Thursday, April 29, 2010

वैष्णव जन तो तेने कहिए,

वैष्णव जन तो तेने कहिए,
जे पीड़ पराई जाणे रे |
पर दु:खे उपकार करे तोये ,
मन अभिमान न आणे रे |
सकल लोकमां सहुने वन्दे ,
निंदा न करे केनी रे|
वाच काछ मन -निशछल राखे ,
धन धन जननी तेरी रे |
समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी ,
परस्त्री जेने मात रे |
जिव्हा थकी असत्य न बोले ,
परधन नव झाले हाथ रे |
मोह माया व्यापे नहि जेने ,
दृढ व्रैग्य जेना मनमा रे ,
रमणमंशु ताड़ी लागी,
सकल तीर्थ तेरा तन माँ रे ,
वन लोभी ने कपट रहित छे ,
काम क्रोध निवार्य रे ,
भने नर्सियो तेनु दर्शन करता ,
पुल एको तेर तरय रे| (नरसी मेहता १४१४-१४६८ गुजरात )

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