शुक्र है हममहात्मा नहीं हैं ,
अभी भी यादोंके कुछ मायनेहैं ,
अभी भी उन्गलीयाँ ,
दरख्तों के सीनेपे ,
तलाशती हैं वोनाम ,
जो लड़कपन मेंलिखा था ,
और फिर गलेसे लगा लेतीहैं ,
हल्की हल्की सी पदचाप ,
चुपचाप सुनती हैं ,
हथेली ...,बस,
ज़मीन हो जाती हैं ,
अभी भी हम ,
आसमान से गिरती बूंदों में ,
किन्हीं दोस्तों के पेरों के निशां ढूंढ़ते हैं ,
जो चले गए हैं रहने सितारों में
और लौट आतेहैं बार-बार,
देह कीतलाश मेंपृथ्वी पर,
अभी आकारों का मोह गया नहींहै ,
न उनमेन हममें ,
रूप और गंध की चाह रचीबसी है अभी ,
उनमे भी हममे भी,
गान भर आओ गान होकर ,
इन्हीमें ,
स्वागत है तुम्हारा ,
शुक्र है महात्मा नहीं
बलराम
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